बुतों को भूल जाते हैं ख़ुदा को याद करते हैं बरहमन जब सफ़र सू-ए-इलाहाबाद करते हैं न गर्दन मारते हैं वो न देते हैं कभी फाँसी हसीनों को ये सब मशहूर क्यूँ जल्लाद करते हैं सितम-ईजाद कहते हैं ये क्यूँ मा'शूक़ को शाइ'र सितम भी क्या कोई शय है जिसे ईजाद करते हैं हमें बतला न दें आशिक़ जो हैं रू-ए-किताबी पर सबक़ है क्या कोई मा'शूक़ जिस को याद करते हैं