आधा मज़ा विसाल का पाए हुए तो हूँ नंगा गले से तुम को लगाए हुए तो हूँ गो लाख मैं फ़िराक़ में कमज़ोर हो गया उल्फ़त का बोझ सर पर उठाए हुए तो हूँ पूरा पता नहीं है कि जाते हो किस जगह कुछ कुछ तुम्हारे भेद को पाए हुए तो हूँ तुम फिर भी कह रहे हो कि तस्कीं नहीं हुई हालाँकि सारा ज़ोर लगाए हुए तो हूँ ये क्या कहा कि जान बचाता है क़त्ल से नुतफ़ा हराम सर को झुकाए हुए तो हूँ दुश्मन की चापलूसी से कुछ फ़ाएदा नहीं साले को बेवक़ूफ़ बनाए हुए तो हूँ कुछ कुछ वो मेरे क़ाबू में आए हुए तो हैं कुछ कुछ मैं उन को दाब में लाए हुए तो हूँ माना कि 'बूम' बज़्म-ए-सुख़न में मज़ा नहीं थोड़ा सा फिर भी रंग जमाए हुए तो हूँ