आधी पौनी नहीं हो सारी हो तुम हमारी हो बस हमारी हो दिल को मैं काट-चीर कर फेंकूँ पास मेरे जो कोई आरी हो जान तो सब को प्यारी होती है तुम मुझे जान से भी प्यारी हो मैं तिरा बोझ उठा नहीं पाऊँ ज़िंदगी इस क़दर न भारी हो मेरे सीना से लग के रोती हो ऐसा लगता है ग़म की मारी हो