यूँ उन के हसीं रुख़ पर ज़ुल्फ़ों की हर इक लट है जैसे गुल-ए-नाज़ुक पर पत्तों का ये घूँघट है तअ'ज़ीम करो यारो तअ'ज़ीम करो यारो ये बार की चौखट है सरकार की चौखट है हर हाल में रखना है साक़ी का भरम तुम को मय-कश हो तो पी जाओ गर जाम में तलछट है ये जान और ईमाँ की दुश्मन ही सही लेकिन अंगूर की ये बेटी ज़ालिम बड़ी नटखट है चेहरा हो मोहब्बत हो ख़ुशबू हो तबस्सुम हो जी चाहे जिसे देखो हर शय में मिलावट है अब उस की मोहब्बत पर कैसे हो यक़ीं जिस के चेहरे पे है नक़्क़ाली बातों में बनावट है ऐ 'नूर' समझना है भूकम्प के मक़्सद को ये क़हर-ए-इलाही है या वक़्त की करवट है