आदमी आदमी से मिलते हैं आप भी क्या किसी से मिलते हैं ये हसीं जिस किसी से मिलते हैं जानता है मुझी से मिलते हैं हम से फुर्क़त-नसीब क्या जानें जो मज़े ज़िंदगी से मिलते हैं क्या बताएँ जुनूँ में क्या क्या लुत्फ़ हम को उन की हँसी से मिलते हैं क्या कहें जब वो मिलते हैं तन्हा उन से हम किस ख़ुशी से मिलते हैं उस की सूरत को फिर कोई देखे जिस से वो बे-रुख़ी से मिलते हैं उन की रुख़्सत के वक़्त हम उन से हाए किस बेकसी से मिलते हैं लाख ग़म-ए-ज़िंदगी है ख़ुद या'नी लाख ग़म-ए-ज़िंदगी से मिलते हैं अपने मज़हब में है निफ़ाक़ हराम जिस से मिलते हैं जी से मिलते हैं सुख़न-ए-'दाग़' के मिरे 'राग़िब' सुख़न-ए-'शौक़' ही से मिलते हैं