हम आज कुछ हसीन सराबों में खो गए आँखें खुलीं तो जागते ख़्वाबों में खो गए हम सफ़्हा-ए-हयात से जब बे-निशाँ हुए लफ़्ज़ों की रूह बन के किताबों में खो गए आईना-ए-बहार के कुछ अक्स-ए-मुज़्महिल ख़ुशबू का रंग पा के गुलाबों में खो गए दर-अस्ल बर्शगाल के तुम आफ़्ताब थे बरसात जब हुई तो सहाबों में खो गए निकले थे जो भी आज तलाश-ए-सवाब में वो ज़िंदगी के सख़्त अज़ाबों में खो गए दिल को थी एक शहर-ए-तमन्ना की जुस्तुजू लेकिन हम आरज़ू के ख़राबों में खो गए जब मसअला हयात का कुछ हल न हो सका हम 'कैफ़' फ़लसफ़े की किताबों में खो गए