आदमी ख़्वार भी होता है नहीं भी होता इश्क़ आज़ार भी होता है नहीं भी होता ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं उन का घर-बार भी होता है नहीं भी होता ज़िंदगी सहल-पसंदी में बसर कर लेना कार-ए-दुश्वार भी होता है नहीं भी होता कार-ए-दुनिया ही कुछ ऐसा है कि दिल से तिरा दर्द सिलसिला-वार भी होता है नहीं भी होता शादी-ओ-मर्ग ने ये नुक्ता बताया है कि वक़्त तेज़-रफ़्तार भी होता है नहीं भी होता 'अफ़ज़ल' और क़ैस ने क़ानून बनाया है कि इश्क़ दूसरी बार भी होता है नहीं भी होता