बेदारी में सोते ख़्वाब देखे पागल होते ख़्वाब तेरी आँख में रहते हम यार अगर हम होते ख़्वाब जाने अब किस हाल में हूँ छोड़ आए थे रोते ख़्वाब ताबीरों से आरी थे कैसे कामिल होते ख़्वाब मुस्काती आँखों में अक्सर देखे हम ने रोते ख़्वाब कुछ न कुछ मिल जाता फल काश ज़मीं में बोते ख़्वाब 'अफ़ज़ल' इतना शोर न कर जाग न जाएँ सोते ख़्वाब