आग ही काश लग गई होती दो घड़ी को तो रौशनी होती लोग मिलते न जो नक़ाबों में कोई सूरत न अजनबी होती पूछते जिस से अपना नाम ऐसी शहर में एक तो गली होती बात कोई कहाँ ख़ुशी की थी दिल को किस बात की ख़ुशी होती मौत जब तेरे इख़्तियार में है मेरे क़ाबू में ज़िंदगी होती महक उठता नगर नगर 'ख़ावर' दिल की ख़ुशबू अगर उड़ी होती