अपने चेहरे पर कई चेहरे लिए हम बड़े ही पारसा बन कर जिए राज़ उल्फ़त का छुपाने के लिए ज़ब्त-ए-गिर्या भी किया लब भी सिए जिन में चलती हैं हवाएँ तेज़ तेज़ ऐसी राहों में जलाए हैं दिए जो भी हैं इस बज़्म में मदहोश हैं और ये मदहोशियाँ हैं बिन पिए आप ने छोड़े हैं जो नक़्श-ए-क़दम वो हमारे हक़ में हैं रौशन दिए ग़म के तूफ़ानों की ज़द पर बे-ख़तर फिर 'जमाली' ने जलाए हैं दिए