आग ज़ख़्मों की जला कर देखो जी को इक रोग लगा कर देखो कितनी मा'सूम है रूदाद-ए-हयात ख़ुद को आसेब बना कर देखो शिकवा-ए-नीम-निगाही है ग़लत फिर तो चेहरा ही मिला कर देखो क्या कहें लफ़्ज़-ए-मोहब्बत है गराँ दिल के औराक़ उठा कर देखो कितने चेहरे हैं नक़ाब-आलूदा लौ चराग़ों की बढ़ा कर देखो अपनी बिछड़ी हुई तन्हाई से क्यूँ न इक बार वफ़ा कर देखो बहती मौजों को क़रार आ जाए नग़्मा-ए-दर्द सुना कर देखो कितने शफ़्फ़ाफ़ हैं यादों के बदन तुम इन्हें हाथ लगा कर देखो दिल की जन्नत को सुकूँ कुछ तो मिले दश्त-ओ-सहरा ही बसा कर देखो बिस्तर-ए-गुल पे बहुत रात गए कोई सोता है जगा कर देखो उन मकानों में मकीं कोई नहीं वैसे ज़ंजीर हिला कर देखो नाम अपना भी कहीं है कि नहीं मेरा दीवान उठा कर देखो