आग सीने में मोहब्बत की लगाते क्यों हैं जब उन्हें छोड़ के जाना है तो आते क्यों हैं हम जब इंसान की तारीफ़ में आते ही नहीं फिर हमें लोग कलेजे से लगाते क्यों हैं दूर काबा तो है बंदों की इबादत के लिए फिर ये ता'मीर-शुदा घर को गिराते क्यों हैं काँच का घर न शजर है कोई आँगन में मिरे दोस्तो संग मिरे घर में फिर आते क्यों हैं जब उन्हें मुझ से मोहब्बत ही नहीं है 'स्वामी' फिर मिरा नाम वो लिख लिख के मिटाते क्यों हैं