दिल पर जो तिरी याद का पहरा नहीं होता सागर की तरह ज़ख़्म भी गहरा नहीं होता ख़्वाबों का बहुत देखना अच्छा नहीं होता हर ख़्वाब यक़ीनन कभी सच्चा नहीं होता मर्ज़ी है मिरी जिस को भी चाहूँ उसे देखूँ आँखों पे किसी ज़ात का पहरा नहीं होता लिल्लाह तबीबों को दिखाते हो मुझे क्यों इस टूटे हुए दिल का मुदावा नहीं होता निकला है कहाँ रेत में तू प्यास बुझाने सहरा में जो दिखता है वो दरिया नहीं होता होंटों को नुजूमी के जो सीना है तो सी दो तक़दीर का लिक्खा कभी झूटा नहीं होता कोई न अगर छीनता बच्चे का निवाला वो पेट पकड़ कर कभी सोया नहीं होता 'स्वामी' ज़रा सूरज को समुंदर से निकालो थक-हार के यूँ डूबना अच्छा नहीं होता