आगही होती है पहले बे-ख़ुदी होती नहीं दोस्ती जब तक न होगी दुश्मनी होती नहीं सैर-ए-गुलशन कीजिए अश्कों की चादर ओढ़ कर मुस्कुराने से चमन में ताज़गी होती नहीं और बढ़ जाती है अपना तज्रबा तो है यही दूर रहने से मोहब्बत में कमी होती नहीं हम नहीं ये सारी दुनिया कह रही है दोस्तो जब तलक ज़ख़्मी न दिल हो बे-ख़ुदी होती नहीं