बिर्हा की काली रातों में जब भी दिल घबराता है मैं दिल को समझाता हूँ और दिल मुझ को समझाता है उस जैसा बे-बाक न देखा मैं ने कोई ज़माने में मेरा ही दिल चोरी कर के मुझ से नज़र मिलाता है आईने को क्यों हैरत है देख के मेरे अश्कों को तन्हाई में रोने से ग़म का बादल छट जाता है तर्क-ए-वफ़ा करने की उस की अपनी ही मजबूरी थी फिर भी उस को देख के तन्हा दिल मेरा भर आता है प्यार मिरा तो झुटलाता है हर अपने बेगाने से ऐसी बातें कर के मेरे दिल को क्यों दहलाता है आज घिरा हूँ ग़म के भँवर में कल ख़ुशियाँ होंगी हासिल मौजों से जो टकराता है वो साहिल पा जाता है ये दुनिया जब ज़ख़्म कोई देती है मैं हँस देता हूँ लेकिन आँखें भर आती हैं ज़िक्र जो तेरा आता है