आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम सब कुछ कहा मगर न खुले राज़दाँ से हम अब भागते हैं साया-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम कुछ दिल से हैं डरे हुए कुछ आसमाँ से हम हँसते हैं उस के गिर्या-ए-बे-इख़्तियार पर भूले हैं बात कह के कोई राज़दाँ से हम अब शौक़ से बिगड़ के ही बातें किया करो कुछ पा गए हैं आप के तर्ज़-ए-बयाँ से हम जन्नत में तो नहीं अगर ये ज़ख़्म-ए-तेग़-ए-इश्क़ बदलेंगे तुझ को ज़िंदगी-ए-जावेदाँ से हम