आगे हमारे अहद से वहशत को जा न थी दीवानगी कसो की भी ज़ंजीर-ए-पा न थी बेगाना सा लगे है चमन अब ख़िज़ाँ में हाए ऐसी गई बहार मगर आश्ना न थी कब था ये शोर-ए-नौहा तिरा इश्क़ जब न था दिल था हमारा आगे तू मातम-सरा न थी वो और कोई होगी सहर जब हुई क़ुबूल शर्मिंदा-ए-असर तो हमारी दुआ न थी आगे भी तेरे इश्क़ से खींचे थे दर्द-ओ-रंज लेकिन हमारी जान पर ऐसी बला न थी देखे दयार-ए-हुस्न के में कारवाँ बहुत लेकिन कसो के पास मता-ए-वफ़ा न थी आई परी सी पर्दा-ए-मीना से जाम तक आँखों में तेरी दुख़्तर-ए-रज़ क्या हया न थी इस वक़्त से क्या है मुझे तो चराग़-ए-वक़्फ़ मख़्लूक़ जब जहाँ में नसीम-ओ-सबा न थी पज़मुर्दा इस क़दर हैं कि है शुबह हम को 'मीर' तन में हमारे जान कभू थी भी या न थी