हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है बुझा चुकी थी जिसे वो दिया जला हुआ है हुज़ूर आप कोई फ़ैसला करें तो सही हैं सर झुके हुए दरबार भी लगा हुआ है खड़े हैं सामने कब से मगर नहीं पढ़ते वो एक लफ़्ज़ जो दीवार पर लिखा हुआ है है किस का अक्स जो देखा है आईने से अलग ये कैसा नक़्श है जो रूह पर बना हुआ है ये किस का ख़्वाब है ताबीर के तआक़ुब में ये कैसा अश्क है जो ख़ाक में मिला हुआ है ये किस की याद की बारिश में भीगता है बदन ये कैसा फूल सर-ए-शाख़-ए-जाँ खिला हुआ है सितारा टूटते देखा तो डर गई 'राहत' ख़बर न थी यही तक़दीर में लिखा हुआ है