आग़ोश का हज़ पैकर-ओ-दीबा ने उठाया बोसे का मज़ा साग़र-ए-सहबा ने उठाया किस के दिल-ए-महज़ूँ को सताया था कि इक उम्र ख़जलत से न सर ज़ुल्फ़-ए-चलीपा ने उठाया शायद मह-ए-कनआ'न की नज़र आ गई तस्वीर कहना है अबस रंज ज़ुलेख़ा ने उठाया ज़ालिम चमन-आरा को है गुलचीं की इजाज़त क्यों शोर अबस बुलबुल-ए-शैदा ने उठाया था ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दुश्मन-ए-खूँ-ख़्वार के दिल में बेड़ा मिरी ईज़ा का अहिब्बा ने उठाया हँसती थी खड़ी सैकड़ों सफ़ रोज़-ए-क़यामत सर ख़ाक से जिस दम तिरे रुस्वा ने उठाया अग़्यार का मुँह था मुझे महफ़िल से उठाते सच यूँ है तिरी रंजिश-ए-बेजा ने उठाया ऐ दोस्त तिरे दिल में कभी रहम न आया सौ बार मुझे ख़ाक से आदा ने उठाया बीमार-ए-मोहब्बत को अब अल्लाह शिफ़ा दे सुनते हैं कि हाथ उस से मसीहा ने उठाया आमीं की सदा हज़रत-ए-इज़्ज़त में है हर-सू क्या दस्त-ए-दुआ' आशिक़-ए-शैदा ने उठाया है क़द्र सुख़न-गो कि पस-ए-मर्ग 'शहीदी' ताबूत मिरा दोष पे 'सौदा' ने उठाया