आतिश-ए-मय से चराग़-ए-हुस्न रौशन हो गया आब इस तस्वीर से चेहरे को रोग़न हो गया यार के नज़्ज़ारा-ए-रुख़्सार का हाएल है ख़त तीरा-बख़्ती से हमारी ख़िज़्र रहज़न हो गया दूद-ए-गर्दूं शो'ला ख़ुर आतिश शफ़क़ अख़गर नुजूम आलम-ए-बाला मिरी आहों से गुलख़न हो गया आह वो दिल जिस को लब्बैक-ए-हरम से आर था इश्क़ में इक बुत के नाक़ूस-ए-बरहमन हो गया हर शजर नख़्ल-ए-शहीदाँ रौज़ा-ख़्वाँ हर अंदलीब एक गुल बन मुझ को मातम-ख़ाना गुलशन हो गया बज़्म-ए-क़ातिल में मिला था सर कटाने का मज़ा जुमला-तन मैं शम्अ' के मानिंद गर्दन हो गया क्यों सफ़र से आ के तू रू-पोश है रश्क-ए-बहार ऐब क्या गर अर्ग़वाँ का फूल सौसन हो गया इक तिरे दिल को नहीं तासीर मुतलक़ ऐ परी वर्ना जब आतिश में रक्खा मोम आहन हो गया इस क़दर दूद-ए-जिगर से मेरे वाँ काजल जमा बंद मातम-ख़ाने का हर एक रौज़न हो गया नाज़नीन-ए-रूह को क्यूँकर न आर आए भला किस क़दर मुस्ता'मल अपना जामा-ए-तन हो गया खाई जब ठोकर तिरे वहशी को दम याद आ गया उस को हर इक संग-ए-रह संग-ए-फ़लाख़न हो गया सीना-ए-अहबाब पर पड़ता है अपना हर क़दम सैर के क़ाबिल नहीं ये बाग़ मदफ़न हो गया कल जो 'नासिख़' ने 'शहीदी' को पिन्हाया पैरहन ना-तवानी से गरेबाँ तौक़-ए-गर्दन हो गया