आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत अब नज़र आए है वाँ नौहागरी की सूरत न वो अंदाज़ न आवाज़ न इश्वा न अदा यक-ब-यक मिट गई यूँ जल्वागरी की सूरत अब ख़याल उस का वहाँ आँखों में फिरता है मिरी कोई फिरता था जहाँ कब्क-ए-दरी की सूरत उस के जाने से मिरा दिल है मिरे सीने में दम का मेहमान चराग़-ए-सहरी की सूरत ने ख़बर उस को मिरी पहुँचे है ने उस की मुझे बंध गई है अजब इक बे-ख़बरी की सूरत नाम लूँ किस का कि इक गुल के लिए जाते हैं अश्क आँखों से अक़ीक़-ए-जिगरी की सूरत 'मुसहफ़ी' है यही अब सोच कि देखें तो फ़लक फिर भी दिखलाएगा यार-ए-सफ़री की सूरत