बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया जो बच रहे थे उन्हें मय पिला के मार दिया ये क्या अदा है कि जब उन की बरहमी से हम न मर सके तो हमें मुस्कुरा के मार दिया न जाते आप तो आग़ोश क्यूँ तही होती गए तो आप ने पहलू से जा के मार दिया मुझे गिला तो नहीं आप के तग़ाफ़ुल से मगर हुज़ूर ने हिम्मत बढ़ा के मार दिया न आप आस बँधाते न ये सितम होता हमें तो आप ने अमृत पिला के मार दिया किसी ने हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल से जाँ तलब कर ली किसी ने लुत्फ़ के दरिया बहा के मार दिया जिसे भी मैं ने ज़ियादा तपाक से देखा उसी हसीन ने पत्थर उठा के मार दिया वो लोग माँगेंगे अब ज़ीस्त किस के आँचल से? जिन्हें हुज़ूर ने दामन छुड़ा के मार दिया चले तो ख़ंदा-मिज़ाजी से जा रहे थे हम किसी हसीन ने रस्ते में आ के मार दिया रह-ए-हयात में कुछ ऐसे पेच-ओ-ख़म तो न थे किसी हसीन ने रस्ते में आ के मार दिया करम की सूरत-ए-अव्वल तो जाँ-गुदाज़ न थी करम का दूसरा पहलू दिखा के मार दिया अजीब रस-भरा रहज़न था जिस ने लोगों को तरह तरह की अदाएँ दिखा के मार दिया अजीब ख़ुल्क़ से इक अजनबी मुसाफ़िर ने हमें ख़िलाफ़-ए-तवक़्क़ो बुला के मार दिया 'अदम' बड़े अदब-आदाब से हसीनों ने हमें सितम का निशाना बना के मार दिया तअ'य्युनात की हद तक तो जी रहा था 'अदम' तअ'य्युनात के पर्दे उठा के मार दिया