आह को माइल-ए-गुफ़्तार करूँ या न करूँ उन से कुछ शिकवा-ए-आज़ार करूँ या न करूँ आँखें अपनी हैं ये हाथ अपने हैं मुँह अपना है है हक़ीक़त मगर इक़रार करूँ या न करूँ फिर मुसीबत में वो आवाज़ अगर दें मुझ को दिल बता तू ही कि इंकार करूँ या न करूँ ख़ास है मेरे लिए उन के जुनूँ की ठोकर ऐसे एहसान का इक़रार करूँ या न करूँ अब तो ख़ुद अपनी फ़िरासत से हूँ मैं भी मश्कूक हम-नवाओं मैं ये इज़हार करूँ या न करूँ यही नाकामियाँ क़िस्मत में लिखी हैं या-रब अपनी तक़दीर से पैकार करूँ या न करूँ मेरे इक हाथ ने फूँका है नशेमन मेरा दूसरे हाथ पे इज़हार करूँ या न करूँ