हद से बढ़ जाए भी तो दर्द दबाए रखना अपने जज़्बात को सीने में छुपाए रखना हर तरफ़ ख़ार हैं और राह भी दुश्वार बहुत अपने दामन को सलीक़े से बचाए रखना जाने किस पल कोई ता'बीर ही सच हो जाए अपनी नींदों को तो ख़्वाबों से सजाए रखना हम-सफ़र का ही पता और न मंज़िल की ख़बर रास्ते को तो पता अपना बताए रखना तीर बरसें भी अगर हाथ न लग़्ज़िश खाएँ अपने हाथों में तो परचम को उठाए रखना तिरी बातों में ये तल्ख़ी है क्यों कह दे 'अनवर' तू ने सीखा ही नहीं सच को छुपाए रखना