आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ात नहीं की लफ़्ज़ों ने कई दिन से कोई बात नहीं की इज़हार न आँखें न तहक्कुम न क़रीना लहजे ने भी अर्से से मुलाक़ात नहीं की इसरार था माथे पे न आँखों में नमी थी तुम ने तो रिआ'यत भी मिरे साथ नहीं की तरतीब दिया उस के लिए शोर-ए-अना को हम ने भी कई दिन से बहुत रात नहीं की दो चार हवाओं के क़दम धूप के छींटे 'जावेद' ने शे'रों में नई बात नहीं की