खोए गए तो आइने को मो'तबर किया हम ने तिरी तलाश में अपना सफ़र किया बे-घर मुसाफ़िरों के मुक़द्दर में ख़ाक है सो हम ने गर्द-ए-राह को दीवार-ओ-दर किया उस मरकज़-ए-जमाल के हम भी असीर हैं जिस मरकज़-ए-जमाल ने हर दिल में घर किया शहर-ए-वफ़ा ख़मोश है पत्थर बने बग़ैर कैसा फ़रेब-ए-कोह-ए-निदा ने असर किया बाज़ू समेटते हैं दरख़्तों पे कुछ तुयूर शायद किसी ने तज़्किरा-ए-बाल-ओ-पर किया यादों की भीड़ में भी है तन्हाई हम-सफ़र उस की हो ख़ैर जिस ने हमें दर-ब-दर किया