आहिस्ता-ख़िरामी सही आ जाए तो बेहतर आँखों में कोई मेरे समा जाए तो बेहतर आवारा-निगाही उसे क्यों ढूँड रही है जज़्बा ये समझ में मिरी आ जाए तो बेहतर ये मेरा सफ़ीना है कहाँ जा के लगेगा बहता हुआ साहिल कोई आ जाए तो बेहतर चर्चा है बहुत हुस्न का उस शख़्स के लेकिन वो एक झलक अपनी दिखा जाए तो बेहतर क़िस्सा न अभी छेड़ सबा लाला-ओ-गुल का वो जान-ए-बहार ऐसे में आ जाए तो बेहतर