आहों के कोई ढब हैं न रोने के क़रीने फ़ुर्क़त को बढ़ाया है मिरी कम-हुनरी ने मक़्सूद पे हैं पेश-ए-रक़ीबान-ए-परीदा क्या उड़ना सिखाया हमें बे-बाल-ओ-परी ने ताइर वहीं बस्ते हैं जहाँ संग न आएँ आबाद रखा मुझ को मिरी बे-समरी ने हूँ भी कि नहीं हूँ और अगर हूँ भी तो क्या हूँ तशवीश में रक्खा है तिरी ख़ुद-निगरी ने महफ़िल में घुटन होती है तन्हाई में वहशत रक्खा न कहीं का मुझे ख़स्ता-जिगरी ने