आई ख़िज़ाँ तो बाद-ए-सबा खींच ली गई जैसे गुलों के लब से दुआ खींच ली गई काला नक़ाब अद्ल की आँखों पे बाँध कर उस के बदन पे जो थी क़बा खींच ली गई लगने लगा है मिल के यूँ अहल-ए-वतन से अब जैसे हर एक दिल से वफ़ा खींच ली गई ग़ारत-गरी के बाद तमाशे के वास्ते बाक़ी थी जिन सरों पे रिदा खींच ली गई तुम ने ज़बाँ को इज़्न-ए-तकल्लुम नहीं दिया उस ने जो तुम को दी थी सदा खींच ली गई हम को न ज़िंदगी पे न क़ुदरत क़ज़ा पे है हम से हमारी ये भी रज़ा खींच ली गई एहसास उस के छोड़ के जाने पे यूँ हुआ सावन से जैसे काली घटा खींच ली गई पहले हज़ार ग़म हुए नाज़िल हमीं पे फिर थी सब ग़मों की जो भी दवा खींच ली गई वो हाथ क्या उठे मिरी पुर्सिश में दोस्तो सर से मिरे हर एक बला खींच ली गई मेहनत-कशों ने ख़ूब मुनव्वर किए महल मेहनत-कशों से उन की ज़िया खींच ली गई ख़ुद को भी देखता हूँ मैं हैरत से आज-कल मिलने की मेरी मुझ से अदा खींच ली गई