आइना देखना अंगुश्त ब-दंदाँ रहना उस ने तो हम को भी सिखला दिया हैराँ रहना डगमगा जाएँ क़दम राह-ए-तलब में किस वक़्त तू मिरे साथ मिरे शौक़ गुरेज़ाँ रहना दिल-ए-नाज़ुक को लगाना था ठिकाने या-रब इस के बस का नहीं नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ रहना जो हुआ तूर पे इस में नहीं हैरत कोई इब्न-ए-आदम की तो तक़दीर है हैराँ रहना तेरे मेआ'र पे ऐ ज़िंदगी रहना है कठिन सीख ले तू ही मिरी शान के शायाँ रहना मैं तो कर गुज़रूँगा जो दिल में मिरे आएगी मुझ को मंज़ूर नहीं अपना निगहबाँ रहना उस की नज़रों में कहीं ये भी इबादत ही न हो उम्र भर ख़ुद से मिरा दस्त-ओ-गरेबाँ रहना दौर-ए-हाज़िर की बदलती हुई इन क़द्रों में कितना दुश्वार है इंसान का इंसाँ रहना