बड़े ख़ुलूस से शाइस्तगी से मिलता है मिरा हरीफ़ भी मुझ को ख़ुशी से मिलता है मुझे वो इन दिनों ज़िंदा-दिली से मिलता है ख़ुशी यही है कि अब वो ख़ुशी से मिलता है सुकून दिल को तो अब दर्द ही से मिलता है ये लुत्फ़ वो है जो हम-साएगी से मिलता है न जाने इन दिनों क्यों शैख़ मय-गुसारों से बड़े नियाज़ बड़ी आजिज़ी से मिलता है है कार-ए-नेक हर इक हाल में जिए जाना मुझे ये हौसला मेरी ख़ुदी से मिलता है ख़ला-नवर्द हुए तो पता चला हम को यक़ीं का रिश्ता कहीं बेबसी से मिलता है नहीं है कोई भी शय पाएदार दुनिया में वो एक दर्स जो हम को ख़ुशी से मिलता है हमेशा मुझ से ये कहते हैं शैख़ मय पी कर मिरा मिज़ाज फ़क़त आप ही से मिलता है ज़रा भी फ़र्क़ नहीं है मिज़ाज-ए-'राहत' में वो आज-कल भी उसी सादगी से मिलता है