आईना देखते ही वो दीवाना हो गया देखा किसे कि शम्अ' से परवाना हो गया गुल कर के शम्अ' सोए थे हम ना-मुराद आज रौशन किसी के आने से काशाना हो गया दीवाना क़ैस पहले हमें छेड़ता रहा फिर रफ़्ता रफ़्ता नज्द में याराना हो गया काफ़ी न मोहर-ए-ख़ुम को हुए लुक्का-हा-ए-अब्र अब इस क़दर वसीअ' ये ख़ुम-ख़ाना हो गया हासिल ब-इख़तिसास है उस दिल को ये शरफ़ का'बा बना कभी कभी बुत-ख़ाना हो गया लाए चुरा के बहर-ए-परस्तिश बुतों को घर वीरान चार रोज़ में बुत-ख़ाना हो गया मुँह चूम लूँ ये किस ने कहा मुझ को देख कर दीवाना था ही और भी दीवाना हो गया तोड़ी थी जिस से तौबा किसी ने हज़ार बार अफ़सोस नज़्र-ए-तौबा वो पैमाना हो गया मय तौबा बन के आई थी लब तक कि ऐ 'रियाज़' लबरेज़ अपनी उम्र का पैमाना हो गया