सीना-ए-संग में ढूँढता है गुदाज़ दे ख़ुदा दिल को इक और उम्र-ए-दराज़ हम दिखाना भी चाहें अगर कुछ को कुछ आइनों से करें किस तरह साज़-बाज़ इक तरफ़ ख़्वाब है इक तरफ़ ज़िंदगी देखिए कौन होता है अब सरफ़राज़ तेरे ग़म से मिली दिल को वो ज़िंदगी तुझ से भी कर दिया है हमें बे-नियाज़ इस तरह मेरी आँखों से आँसू बहे बे-वुज़ू ही अदा हो गई हर नमाज़ रू-ब-रू उस के दिल ही को ले कर चलें बह चलेगा तो ख़ूँ बज उठेगा तो साज़ ये झुके या कटे बस तिरे वास्ते मेरे काँधों को दे वो सर-ए-इम्तियाज़ उन से भी दिल को 'असरार' कैसे कहीं राज़ को तो ब-हर-हाल रखना है राज़