आईना-दर-आईना क़द-आवरी का कर्ब है गुम-शुदा दानिश-वरी है ख़ुद-सरी का कर्ब है मेरा दुख ये है कि मैं ना-मो'तबर लश्कर में हूँ सर-ब-नेज़ा मैं नहीं हूँ इक जरी का कर्ब है भूक को निस्बत नहीं गेहूँ की पैदावार से मेरा दस्तर-ख़्वान ख़ाली तश्तरी का कर्ब है इक तरफ़ यारों की यारी का भरम खुलता हुआ इक तरफ़ इख़्लास की बख़िया-गरी का कर्ब है अपने दरवाज़े पे बैठा सोचता रहता हूँ मैं मेरा घर अज्दाद की बारा-दरी का कर्ब है वो ज़माना है कि अब तार-ए-नफ़स भी है गिराँ ब'अद की मंज़िल तो बस ख़ुश-पैकरी का कर्ब है वक़्त की मीज़ान पर बीनाई ख़ंदाँ है 'शरर' कोर-बीनों में भी अब दीदा-वरी का कर्ब है