आईना-ए-दिल में कुछ अगर है तेरा ही जमाल जल्वा-गर है हम मर गए तेरी जुस्तुजू में बे-रहम कहाँ है तू किधर है रहबर नहीं चाहती रह-ए-इश्क़ वाँ शौक़ ही अपना राहबर है क्यूँ मारे है लाफ़ हज्ज-ए-अकबर अपने किए पर भी कुछ नज़र है काबे सी जगह पहुँच फिर आया तू हाजी नहीं है गीदी ख़र है उस दर ही की आरज़ू में 'जोशिश' ये मुश्त-ए-ग़ुबार दर-ब-दर है