ये ख़याल-ए-शौक़-परवर दिल के बहलाने को है कोई बे-रुख़ बे-रुख़ी से बाज़ आ जाने को है ये मुअ'म्मा मय-कदे में कौन सुलझाने को है बे-ख़ुदी हुश्यार को और होश दीवाने को है राज़-ए-दर-पर्दा का पर्दा ख़ुद-बख़ुद उठ जाएगा बस फ़क़त उन से नज़र दो-चार हो जाने को है मय-कदे में शैख़ का आना शगुन अच्छा नहीं होश की ले साक़िया रिंदों को बहकाने को है सादगी शश्दर खड़ी है शोख़ियाँ सीना-सिपर इक अदा जाने को है और इक अदा आने को है अल्लाह अल्लाह ये निज़ाम-ए-होश-ओ-मस्ती साक़िया होश मस्ताने को है और कैफ़ पैमाने को है जाम-ओ-मीना की ज़रूरत ही नहीं 'मजरूह' को मस्त नज़रों से कोई मदहोश फ़रमाने को है