आज बरसो के ख़्वाब धुल जाएँ दर्द और इज़्तिराब धुल जाएँ बर्क़ का रक़्स हो यहाँ साक़ी दिल में उठते अज़ाब धुल जाएँ मेरे नालों की परवरिश करने तुम जो आओ हिजाब धुल जाएँ वस्ल का हो गिला स्याही से और लिक्खे वो बाब धुल जाएँ काश चश्म-ए-हयात रो-रो कर आब से हो के आब धुल जाएँ शैख़ कहता है झूम कर मुझ से आओ पी कर शराब धुल जाएँ उन की नज़रों की इक इनायत हो आज ख़ाना-ख़राब धुल जाएँ बज़्म में अब 'मुराद' आएँ और बन सग-ए-बू-तुराब धुल जाएँ