आज बरसों में तो क़िस्मत से मुलाक़ात हुई आप मुँह फेर के बैठे हैं ये क्या बात हुई उड़ गई ख़ाक-ए-दिल-ओ-जाँ तो वो रोने बैठे बस्तियाँ जल गईं जब टूट के बरसात हुई तुम मिरे साथ थे जब तक तो सफ़र रौशन था शम्अ जिस मोड़ पे छूटी है वहीं रात हुई इस मोहब्बत से मिला है वो सितमगर हम से जितने शिकवे न हुए उतनी मुदारात हुई एक लम्हा था अजब उस की शनासाई का कितने नादीदा ज़मानों से मुलाक़ात हुई क़त्ल हो जाती है इस दौर में दिल की आवाज़ मुझ पे तलवार न टूटी ये करामात हुई गाँव के गाँव बुझाने को हवा आई थी मेरे मासूम चराग़ों से शुरूआत हुई शायरी पहले रसूलों की दुआ थी 'क़ैसर' आज इस अहद में इक शोबदा-ए-ज़ात हुई