आज दिन पर हमें कल रात पे रोना आया रोज़ बदले हुए हालात पे रोना आया क्या हुआ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार शब-ए-हिज्र न पूछ हम को बे-बात हर इक बात पे रोना आया हँस दिया नासेह-ए-कम-अक़्ल मिरी बातों पर और मुझे उस की ख़ुराफ़ात पे रोना आया देख कर हालत-ए-ख़स्ता तिरे मयख़ाने की पीर-ए-मय-ख़ाना तिरी ज़ात पे रोना आया जाने क्या बक गया मैं हाए जुनूँ में 'बेताब' जिस को भी आया मिरी बात पे रोना आया