आज जीने की कुछ उम्मीद नज़र आई है मुद्दतों ब'अद तिरी राहगुज़र आई है ज़िंदगी का कोई एहसास ही बाक़ी न रहा ज़िंदगी ले के मुझे आज किधर आई है आप देखें तो ज़रा ख़ून-ए-तमन्ना की बहार कितनी सुर्ख़ी मिरी आँखों में उतर आई है किस के पैराहन-ए-रंगीं की महक है इस में आज ये बाद-ए-सबा हो के किधर आई है तू ने ख़ुद तर्क-ए-मोहब्बत की क़सम खाई थी क्यूँ तिरी आँख मुझे देख के भर आई है अब किसी जल्वा-ए-रंगीं से मुझे काम नहीं उन की तस्वीर मिरे दिल में उतर आई है इस में कुछ उन की जफ़ाएँ भी तो शामिल हैं 'शमीम' बेवफ़ाई की जो तोहमत मिरे सर आई है