आज महँगा लहू से पानी है साक़िया तेरी मेहरबानी है अक़्ल पर मस्लहत के पर्दे हैं दिल पे जज़्बों की हुक्मरानी है आह दिल में न अश्क आँखों में मुझ में अब आग है न पानी है उन से कहना सँवर गए जंगल उन से कहना कि रुत सुहानी है मन की दौलत पे रख निगहबानी वर्ना दौलत तो आनी-जानी है बर्फ़ से जिस्म पर निगाह के बाद शर्म से धूप पानी-पानी है फूल पर इतना फूलता क्यों है चंद लम्हों की ज़िंदगानी है पीठ पर वार हो नहीं सकता मेरा दुश्मन भी ख़ानदानी है ज़ख़्म सारे सजा के रखता हूँ आप के प्यार की निशानी है बस तड़पने में काट दी 'बज़्मी' ज़िंदगी हिज्र की कहानी है