आसमाँ रूठा हुआ रोए ज़मीन रूठी हुई इक बला उफ़्तादगान-ए-इश्क़ पर उतरी हुई वो सितम-पेशा तमल्लुक़-ख़ू करम-ना-आश्ना मेरी ख़ुद्दारी ख़ुदी के सोज़ में डूबी हुई ज़ेहन-ओ-दिल उस की अदा-ए-दिल-नवाज़ी पर निसार और ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी पाँव में बजती हुई बख़्शती है मुझ को आदाब-ए-मोहब्बत का शुऊ'र आँधियों में एक तितली फूल से लिपटी हुई तीर है टूटी कमानों से कोई छोड़ा हुआ या किसी क़ातिल-अदा की इक नज़र उड़ती हुई सुर्ख़ पत्थर की फ़सीलें ताज-महलों का सुरूर याद-ए-माज़ी दास्ताँ-दर-दास्ताँ फैली हुई प्यास से पज़मुर्दा जैसे एक रूद-ए-रेगज़ार इक नदी कोहसार से निकली हुई भटकी हुई लैला-ए-मंज़िल तलक कितने निशाँ कितने नुक़ूश रास्तों में जा-ब-जा ख़ुशबू तिरी बिखरी हुई क्या हशम क्या ख़ाक-रू ख़ाकी हुए सब ज़ेर-ए-ख़ाक ग़ौर कर 'बज़्मी' कि ये दुनिया भला किस की हुई