आज मेहंदी लगाए बैठे हैं ख़ूब वो रंग लाए बैठे हैं मेरे आते ही हो गए बरहम कुछ कसी के सिखाए बैठे हैं तेग़ खींची है क़त्ल पर मेरे हाथ मुझ से उठाए बैठे हैं मैं शिकायत जफ़ा की करता हूँ चुपके वो सर झुकाए बैठे हैं दुम चुराए हुए पड़े हैं हम वो जो बालीं पे आए बैठे हैं इम्तिहाँ को कहा तो बोले वो हम तुम्हें आज़माए बैठे हैं कस को नज़रों से आज उतारेंगे क्यूँ वो तेवरी चढ़ाए बैठे हैं देखिए कब वो शम्अ-रू आए शाम से लौ लगाए बैठे हैं टालना वस्ल का जो है मंज़ूर ख़ुद से ख़ुद मुँह थूथाए बैठे हैं सादा-पन में हज़ार जौबन है बाल खोले नहाए बैठे हैं कौन पहलू से उठ गया 'अंजुम' आप क्यूँ दिल दबाए बैठे हैं