बहार आई है सोते को टुक जगा देना जुनूँ ज़रा मिरी ज़ंजीर को हिला देना तिरे लबों से अगर हो सके मसीहाई तो एक बात में जीता हूँ मैं जिला देना अब आगे देखियो जीतूँ न जीतूँ या क़िस्मत मिरी बिसात में दिल है इसे लगा देना रहूँ न गर्मी-ए-मजलिस से मैं तिरी महरूम सिपंद-वार मुझे भी ज़रा तू जा देना ख़ुदा करे तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियह की उम्र दराज़ कभी बला मुझे लेना कभी दुआ देना ब-रंग-ए-ग़ुंचा ज़र-ए-गुल के तईं गिरह मत बाँध 'फ़ुग़ाँ' जो हाथ में आवे उसे उड़ा देना