आज मेरी शब-ए-फ़ुर्क़त की सहर आई है मुद्दतों ब'अद तिरी राहगुज़र आई है देख तो लीजे मिरे ख़ून-ए-तमन्ना की बहार जिस की सुर्ख़ी मिरी आँखों में उतर आई है तू ने तो तर्क-ए-मोहब्बत की क़सम खाई थी क्यूँ तिरी आँख मुझे देख के भर आई है उन के पैराहन-ए-रंगीं की महक है इस में आज क्या बाद-ए-सबा हो के उधर आई है इस में कुछ उन की जफ़ाएँ भी तो शामिल हैं 'शमीम' बेवफ़ाई की जो तोहमत मिरे सर आई है