दिलों में हब्स का आलम पुरानी आदतों से है लबों पर तल्ख़ियों का ज़हर बिगड़े ज़ाइक़ों से है जो उजड़ा शहर ख़्वाबों का तो अपनी भी उड़ी है गर्द किसी सूखे हुए दरिया की सूरत मुद्दतों से है ये काली रात का दरिया बहा कर ले गया सूरज हिरासाँ सुब्ह के साहिल पे दिल तारीकियों से है महकते फूल भी डसने लगे हैं साँप की सूरत फ़ज़ा बाग़ों के अंदर भी दिलों के मौसमों से है उन्हीं लम्हों की आहट से मिलीं बेदारियाँ मुझ को मिरे दरिया की जौलानी समय के पानियों से है वो आँच आने लगी ख़ुद से कि दिल डरने लगा अपना जहन्नुम रूह का भड़का हुआ ख़ामोशियों से है खुलीं आँखें तो सिल नूर में डूबा हुआ पाया मिरे सूरज की ताबानी नज़र के शोबदों से है 'नदीम' इस राह में सदियों की दीवारें भी हाइल हैं नई दुनिया अभी तक ओट में इन ज़ुल्मतों से है