आज मुद्दत में वो याद आए हैं दर ओ दीवार पे कुछ साए हैं आबगीनों से न टकरा पाए कोहसारों से तो टकराए हैं ज़िंदगी तेरे हवादिस हम को कुछ न कुछ राह पे ले आए हैं संग-रेज़ों से ख़ज़फ़-पारों से कितने हीरे कभी चुन लाए हैं इतने मायूस तो हालात नहीं लोग किस वास्ते घबराए हैं उन की जानिब न किसी ने देखा जो हमें देख के शरमाए हैं