ख़ुशी मिली न अगर मुझ को ज़ौक़-ए-ग़म तो मिला मिली न दौलत-ए-दुनिया मुझे क़लम तो मिला ख़ुशी में ख़ुश हूँ तो ग़म में भी मुस्कुराता हूँ कि मुझ को ज़र्फ़-ए-पज़ीराई-ए-अलम तो मिला नहीं है कम किसी जमशेद से मिरी तक़दीर ब-शक्ल-ए-क़ल्ब मुझे एक जाम-ए-जम तो मिला ग़लत है उम्र कटी मेरी सारी कुल्फ़त में सुकून ज़ेर-ए-समा मुझ को एक-दम तो मिला ये ज़िंदगी के कड़े कोस किस तरह कटते खुशा-नसीब कि इक हम-सफ़र सनम तो मिला नहीं है मंज़िल-ए-मक़्सूद अब ज़ियादा दूर सँभाल ख़ुद को क़दम से मिरे क़दम तो मिला न क्यूँ हो अपने मुक़द्दर पे नाज़ मुझ को 'सईद' ब-फ़ज़्ल-ए-रब शरफ़-ए-बोसा-ए-हरम तो मिला