आज सय्याद ने भूले से चमन दिखलाया मेरी तक़दीर ने फिर मुझ को वतन दिखलाया ऐन मस्ती में जो वो शोख़ हुआ सर कि जबीं ये उड़े होश कि नश्शे ने हिरन दिखलाया झुट-पुटा वक़्त हुआ मौत का सामाँ शब-ए-वस्ल सहर-ए-हिज्र का मुर्दों ने कफ़न दिखलाया चाँद को देखते हैं लोटते अँगारों पर तुम ने क्यूँ कब्क-ए-दरी को ये चलन दिखलाया आए वल्लाह दिल-ए-हैरान में क्या कुछ अरमाँ उस ने आईने को तन तन के जो तन दिखलाया मरते जीते ही रहे हम तो अजी दम दम में न कमर उस ने दिखाई न दहन दिखलाया याद में फूल से गालों के सँभाला दिल को कभी नसरीं तो कभी उस को समन दिखलाया फिर तिरा शोर-ए-तबस्सुम जो नमक-रेज़ हुआ फिर मिरा ताज़ा मुझे ज़ख़्म-ए-कुहन दिखलाया कल जो था वादा-ए-वस्ल आज वो फ़र्दा निकला दिन क़यामत का तो ऐ वा'दा-शिकन दिखलाया क्यूँ न मैं ख़ार बनूँ चश्म-ए-रक़ीबाँ में 'नसीम' फूल से गाल मुझे ग़ुंचा-दहन दिखलाया