दिल-ए-तबाह भी है आलम-ए-ख़राब भी है निगाह-ए-दोस्त यही वक़्त-ए-इंक़लाब भी है दो-आतिशा सर-ए-रुख़्सार हो गए आँसू गुलों पे क़तरा-ए-शबनम नहीं शराब भी है निगाह-ए-शौक़ लरज़ते हैं तार चिलमन के तलाश कर इन्ही किरनों में आफ़्ताब भी है कहाँ से देखिए मौज-ए-सुरूर उठती है निगाह-ए-नाज़ भी है साग़र-ए-शराब भी है ख़िलाफ़-ए-अहल-ए-सफ़ीना ही नाख़ुदा से नहीं जबीन-ए-बहर पे लर्ज़ां ख़त-ए-इ'ताब भी है हवा-ए-दहर ने फिर दामनों पे डाल दिया वो गर्द जिस में निहाँ बू-ए-इंक़लाब भी है ऐ जस्तगान-ए-रह-ए-ग़म चले चलो आगे कोई मक़ाम ब-नाम-ए-बहिश्त-ए-ख़्वाब भी है यही वो 'मानी' है सलमा-ए-गोंडवाना तिरा जो फ़ैज़-ए-रुख़ से तिरे साहिब-ए-किताब भी है